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دانلود محصول: تحليل روش شناختي ديدگاه هاي تفسيري علامه شعراني با تكيه برحاشيه منهج الصادقين

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روش شناختي به عنوان مقدمه مطالعات علوم، با استناد به منابع و بهره گيري از ابزارهاي متعدد، به بررسي و تحليل هدف موضوع تحقيق، مي پردازد. در حيطه علوم ديني،  روش شناختي دانش هاي متأثر از قرآن، به خصوص علم تفسير داراي اهميت است.

با نظر به گستره دانش و آراي تفسيري، علوم قرآني و حديثي ميرزا ابو الحسن شعراني(1352ش) ، كه در حواشي ايشان برتفاسير مجمع البيان، روض الجنان و منهج الصادقين نمود يافته است، روش شناختي تفسيري ايشان، با هدف رسيدن به مباني و نظام انديشه ايشان در حوزه تفسير ضروري مي نمايد. و با ملاحظه حواشي فراوان و گسترده ايشان برتفسير منهج الصادقين، اين رويكرد با محوريت اين حواشي پي گرفته شده است.

بررسي حواشي تفسير منهج الصادقين و مطالعه ساير آثار تفسيري و علوم قرآني علامه شعراني، بيانگر  نگاه جامع تفسيري ايشان مي باشد. تنوع روش ها و گرايش هاي تفسيري، اعم از اجتهادي و روايي در حوزه هاي گوناگوني چون: اهتمام به مباحث لغوي، تأكيد بر مباحث كلامي، كاربردي كردن مباحث فقهي، تأييد مباحث عرفاني درعين عدم التزام به اين رويكرد تفسيري، رهيافتهاي قرآني در حل مسائل اجتماعي، نگاه مشروط به تفسير علمي و … بيانگر اين مهم مي باشد.

محوريت آيات قرآن و تفسير اهل بيت D در كنار تفسير مفهومي و مصداقي و اهتمام به علوم قرآني و توجه به منابع تفسيري اهل سنت و نقد و بررسي روايات تفسيري به ويژه اسرائيليات، عمده ترين شاخصه هاي تفكر تفسيري ايشان مي باشد.

كلمات كليدي:

ميرزا ابو الحسن شعراني، منهج الصادقين، ملا فتح الله كاشاني، روش هاي تفسيري، روش شناسي، گرايش هاي تفسيري، علوم قرآني، اصول، مباني.

:فهرست مطالب

مقدمه——————————————— 1-2

فصل اول: كليات و مفاهيم——————————- 3

1-1- بيان مسئله——————————————– 4

1-2- هدف هاي تحقيق————————————— 4

1-3- ضرورت انجام تحقيق———————————— 4

1-4- استفاده كنندگان از نتايج تحقيق—————————– 5

1-5- سؤال هاي تحقيق————————————— 5

1-6- تعريف مفاهيم مطرح شده در اين پژوهش ——————— 5-7

1-7-كليدواژگان طرح تحقيق و معادل لاتين آنها——————— 7

1-8- پيشينه نظري و تجربي———————————— 8-9

1-9- نوع تحقيق و شيوه اجراي آن —————————— 9

فصل دوم:مروري بر زندگي وتأليفات علامه شعراني————- 10

2-1- تولد و تحصیلات————————————— 11

2-2 – استادان و شاگردان————————————– 12

2-3 – جایگاه علمی—————————————– 13

2-4 – اسطوره فضایل اخلاقی———————————– 14

2-5 – آثار وتألیفات علامه شعرانی——————————- 15-19

2-5-1- هدف علامه شعراني از نگارش حاشیه­های تفسیری————– 19

2-5-1-1-کتاب­شناسی منهج الصادقین—————————- 19-21

2-5-2 – حاشیه­نویسی بر منهج الصادقین ————————— 21-23

فصل سوم :مبانی تفسیری علامه شعرانی———————- 24

3-1- پيش فرض ها و مباني تفسيري علامه شعراني ——————– 25-26

3-2 – تفسیر مفهومی و مصداقی——————————— 26-29

3-3 – لزوم محوريت قرآن در تفسیر—————————— 29-30

3-4- تفسیر اهل­بیتD—————————————- 30

3-5 – عدم انحصار تفسیر به اهل بيتD—————————- 31

3-6 – نفی تفسیر به رأی————————————— 32

3-7 – اقوال تفسیري اهل سنت———————————- 32-33

3-8- نفی نظر اخباریان درباره تفسیر منسوب به امام حسن عسکریA——- 33-34

3-9- علوم قرآنی——————————————- 34-36

3-9-1 – علم قرائت—————————————– 36-37

3-9-1-1- تواتر قراءات از نظر علامه شعرانی———————– 37-39

3-9-1-2 – مقایسه آراي شعرانی و خویی درباره قراء ات هفتگانه ——— 39-40

3-9-1-3 – عدم ارتباط حدیث «سبعة احرف» با قراءات هفتگانه———- 40-41

3-9-1-4 – نمونه­هایی از نظريات شعراني پیرامون قراءات————— 41-42

3-9-2-  نسخ———————————————- 42-44

3-9-2-1 – نقد علامه شعرانی به سیوطی درباره نسخ—————— 44-45

3-9-2-3 –  تفاوت دیدگاه علامه شعرانی و آیت الله خویی درباره نسخ—– 45

3-9-2-4- نمونه­هایی ازآراي علامه شعرانی درباره عدم نسخ————- 46

3-9-3 – محکم و متشابه————————————– 46-48

3-9-4 – اعجاز قرآن—————————————- 48-51

3-9-4-1 – نمونه­هایی از استنادات قرآنی علامه پیرامون اعجاز———– 52-53

3-9-5 – حروف مقطعه————————————— 53-55

3-9-6 – عدم تحریف قرآن———————————— 55-58

3- 9- 7-  وحی——————————————– 58-59

3-9-8- تعدادسوره­های قرآن———————————– 60-61

فصل چهارم : روش­ها وگرايش هاي تفسیری علامه شعرانی——- 62

4-1- روش ها و گرايش هاي تفسيري—————————– 63

4-1-1- روش تفسیری قرآن به قرآن  —————————– 63-64

4-1-1- 1- تقابل روش تفسيري قرآن به قرآن شعراني با اخباريان——— 64-65

4-1-1-2- نمونه­هایی از روش تفسیری قرآن به قرآن علامه شعرانی——– 65-67

4-1-2 – روش تفسیری قرآن به سنّت (روایی)———————– 68-69

4-1-2-1- جایگاه سنت در اندیشه­های قرآنی شعرانی—————– 69

4-1-2-2- مباني كاربردي روش تفسیر «قرآن به سنت»درحواشی شعرانی—- 70-72

4-1-2-3- پژوهش­های نقد­الحدیثی علامه شعرانی——————- 72

4-1-2-3-1- شرايط صحت حديث —————————- 72-73

4-1-2-3-2- رد اخبار جعلی———————————- 73-76

4-1-2-3-3- عدم حجيت خبر واحد—————————- 76-78

4-1-2-3-4- مقابله با اسرائیلیات و قصص راه یافته به تفسیر———— 79-80

4-1-2-3-4- 1- مباني نظري شعراني درباره اسرائيليات————— 80-82

4-1-3- روش تفسیری اجتهادی (عقلی)————————— 82-84

4-1-3-1-گرايش لغوی ————————————- 84-85

4-1-3-1 -1- پژوهش­های زبان شناختی شعرانی——————– 85-89

4-1-3 -2-گرایش کلامی———————————— 90

4-1-3-2-1- توجه خاص شعراني به علم كلام——————— 91-92

4-1-3-2-1-1- حسن و قبح——————————— 92-94

4-1-3-2- 1-2- معاد و مرجع در اندیشه­ علامه شعرانی————— 94-95

4-1-3-2 -1-3- نبوت و امامت——————————- 95-96

4-1-3 -3- گرایش فقهی ———————————— 96-97

4-1-3-3- 1- مباني فقهي شعراني—————————— 97-100

4-1-3 -4-  رويكرد اجتماعی ——————————— 100-101

4-1-3-4-1- رهيافت هاي قرآني درحل مسائل اجتماعي————— 101-105

4-1-3-4- 2- جهانی شدن اسلام  —————————— 105

4-1-3 -5- گرایش فلسفی———————————— 105

4-1-3-5-1- تحلیل شعرانی از فلسفه—————————- 105-110

4-1-3- 6- رويكرد شعراني به علوم طبيعي در مباحث تفسيري ———– 110-111

4-1-3-6- 1- رويكرد مشروط شعراني به تفسیر علمی—————- 111-113

4-1-3-6-2 – استنادات شعراني به علوم طبيعي ——————— 113-114

4-1-4-روش تفسير عرفانی ———————————– 114-116

4-1-4-1- تحلیل شعرانی از عرفان واقعي ————————- 116-117

4-1-4-2- موضع شعراني درباره زبان نمادين عرفان—————— 118-119

4-1-4-3- مباني فكري شعراني درباره تفسيرعرفاني—————— 119

يادداشت ها———————————————— 120-125

نتيجه—————————————————– 126-127

منابع—————————————————– 128-134

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